जब बूंद-बूंद पानी के लिए तरस गया था लाहौर 
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-पानी के बदले पाकिस्तान पर पंजाब ने ठोंकी थी रॉयल्टी

एम4पीन्यूज, चंडीगढ़
बिन पानी सब सून। कुछ ऐसा ही हुआ था पाकिस्तान के लाहौर शहर में, जब बंटवारे के बाद भारत के हिस्से वाले पूर्वी पंजाब ने पाकिस्तान के हिस्से वाले पश्चिमी पंजाब को होने वाली पानी की सप्लाई पर रोक लगा दी थी।
तब बूंद-बूंद पानी के लिए तरस गया था लाहौर। यहां तक कि पाकिस्तान का 8 फीसदी कल्चरेबल कमांड एरिया, जो कृषि के लिए बेहद उपजाऊ एरिया होता है, वह भी सूखने की कगार पर पहुंच गया था। दरअसल, इसके लिए खुद पाकिस्तान ही जिम्मेदार था। 1947 में बंटवारे के बाद दिसंबर 1947 के दौरान शिमला में एक समझौता हुआ था कि ईस्ट पंजाब व वेस्ट पंजाब पानी की बंटवारे के सिलसिले को जस का तस कायम रखेंगे। यह समझौता 31 मार्च 1948 को समाप्त हो गया। पूर्वी पंजाब की सरकार ने कई बार इस संबंध में पश्चिमी पंजाब के अधिकारियों को पत्र भेजे लेकिन उनके कान पर जूं तक नहीं रेंगी। नतीजा, 1 अप्रैल 1948 को ईस्ट पंजाब ने माधोपुर हैडवक्र्स से अपर बारी दोआब कैनाल व फिरोजपुर हैडवक्र्स से दिपालपुर कैनाल को होने वाली पानी की सप्लाई बंद कर दी। इसका सबसे ज्यादा असर लाहौर शहर पर पड़ा। इससे पाकिस्तान में भारी खलबली मची और युद्ध जैसे हालात पैदा हो गए थे।
पानी के बदले रॉयल्टी 
पानी की किल्लत को दूर करने के लिए पाकिस्तान के पश्चिमी पंजाब ने नए समझौते पर बातचीत के लिए अपने दो इंजीनियर शिमला भेजे। 18 अप्रैल 1948 को नया समझौता किया गया, जिसकी मियाद अक्तूबर 1948 तक रखी गई। समझौते में तय किया गया कि पंजाब पार्टिशन (अपोर्शनमेंट ऑफ एसैट एंड लायबैल्टीज) ऑर्डर, 1947 और आर्बिट्रल अवॉर्ड, प्राप्रेइटरी राइट्स इन द वाटर ऑफ रावी, ब्यास एंड सतलुज पर ईस्ट पंजाब का अधिकार है, इसके मुताबिक पश्चिमी पंजाब को होने वाली पानी की सप्लाई के एवज में पूर्वी पंजाब को वाटर रॉयल्टी देनी होगी। पाकिस्तान के इंजीनियर्स ने इस समझौते पर दस्तख्त कर दिए।
4 मई 1948 को दिल्ली में हुआ एक समझौता
18 अप्रैल 1948 को हुए समझौते की तर्ज पर एक नया समझौता 4 मई 1948 को दिल्ली में पाकिस्तान व भारत सरकार के बीच भी हुआ। इस समझौते में तय किया गया कि भारत के पंजाब हिस्से से पाकिस्तान को होने वाली सप्लाई के एवज में पाकिस्तान भारत के रिजर्व बैंक में रॉयल्टी जमा करवाएगा। हालांकि बाद में पाकिस्तान इस समझौते से मुकर गया और कहा गया यह दबाव में करवाया गया समझौता था। भारत ने 10 मई 1950 में यू.एन.ओ. में भी समझौते को आगे बढ़ाया लेकिन कोई हल नहीं निकल सका। इसके चलते भारत व पाकिस्तान के बीच तनाव बढ़ता रहा। नतीजा, एक बार फिर युद्ध जैसे हालात पैदा हो गए। ऐसे में वल्र्ड बैंक ने आगे कदम बढ़ाते हुए पानी के विवाद को हल करने की कोशिश की। मार्च 1952 में वल्र्ड बैंक की मध्यस्थता से भारत व पाकिस्तान समझौते पर राजी हुए।

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